👉 यात्रियों के नजरिए 👈
✳️ विभिन्न लोगों द्वारा यात्राओं के करने का उदेश्य :-
🔹 महिलाओं और पुरुषों ने कार्य की तलाश में यात्रा की ।
🔹 प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए लोगो ने यात्रा की ।
🔹 व्यापारियों , सैनिकों , पुरोहितों और तीर्थयात्रियों के रूप में लोगो ने यात्रा की ।
🔹 साहस की भावना से प्रेरित होकर यात्राएँ की हैं ।
✳️ 10 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में आए यात्री :-
👉 ( i ) अल - बिरूनी : जो ग्यारहवी शताब्दी में उज्बेकिस्तान से आया था ।
👉 ( ii ) इब्न बतूता : यह यात्री चौदहवी शताब्दी में मोरक्को से भारत आया था ।
👉 ( iii ) फ्रांस्वा बर्नियर : सत्रहवी शताब्दी में यह यात्री फ़्रांस से आया था ।
👉 ( iv ) अब्दुर्र रज्जाक : यह यात्री हेरात से आया था ।
✳️ अल - बिरूनी का जीवन :-
🔹 अल - बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिश्म में सन् 973 में हुआ था ।
🔹 ख़्वारिश्म शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और अल - बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी बहेतर शिक्षा प्राप्त की थी ।
🔹वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई , फारसी , हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं । हालाँकि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था पर फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था जिन्हें उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से पढ़ा था ।
🔹सन् 1017 ई . में ख़्वारिश्म पर आक्रमण के पश्चात सुल्तान महमूद यहाँ के कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधनी गजनी ले गया । अल - बिरूनी भी उनमें से एक था । वह बंधक के रूप में गजनी आया था पर धीरे - धीरे उसे यह शहर पसंद आने लगा और सत्तर वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक उसने अपना बाकी जीवन यहीं बिताया ।
🔹 अल - बिरूनी ने ब्राम्हण के साथ कई बर्ष बिताए ओर संस्कृत धर्म दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया ।
✳️ अल - बिरूनी की यात्रा :-
🔹 अल - बिरूनी उज्बेकिस्त्ना से बंधक के रूप में गजनवी साम्राज्य में आया था । उतर भारत का पंजाब प्रान्त भी उस सम्राज्य का हिस्सा बन चूका था ।
🔹हालाँकि उसकी यात्रा - कार्यक्रम स्पष्ट नहीं है फिर भी प्रतीत होता है कि उसने पंजाब और उत्तर भारत के कई हिस्सों की यात्रा की थी । अल - बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत , धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया ।
🔹उसके लिखने के समय यात्रा वृत्तांत अरबी साहित्य का एक मान्य हिस्सा बन चुके थे । ये वृत्तांत पश्चिम में सहारा रेगिस्तान से लेकर उत्तर में वोल्गा नदी तक फैले क्षेत्रों से संबंधित थे ।
✳️ किताब - उल - हिन्द :-
🔹 यह पुस्तक अल - बिरूनी के द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई थी ।
🔹इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है ।
🔹यह एक विस्तृत ग्रंथ है |
🔹जो धर्म और दर्शन , त्योहारों , खगोल - विज्ञान . कीमिया . रीति - रिवाजों तथा प्रथाओं , सामाजिक - जीवन , भार - तौल तथा मापन विधियों , मूर्तिकला , कानून , मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधर पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है ।
🔹आरम्भ में एक प्रश्न फिर उत्तर कुछ ऐसे लिखा गया है इस पुस्तक को।
🔹अंत मे एक अन्य संस्कृतियों से तुलना ।
✳️ अल - बिरूनी के लेखन कार्य की विशेषताएँ :-
🔹 अपने लेखन कार्य में उसने अरबी भाषा का प्रयोग किया | 🔹 इन ग्रंथों की लेखन - सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था ।
🔹 उसके ग्रंथों में दंतकथाओं से लेकर खगोल - विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ भी शामिल थीं ।
🔹 प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था , फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधरित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना ।
✳️ अल बिरूनी की जाति व्यवस्था का विवरण :-
🔹 अल बिरूनी ने यह बताने की कोशिश करी की जाति व्यवस्था केवल भारत में ही नहीं बल्कि फारस में भी है और अन्य देशों में भी है । उसने बताया की प्राचीन फारस में चार वर्ग हुआ करते थे ।
👉 पहला घुड़सवार तथा शासक वर्ग
👉 दूसरा भिक्षु तथा पुरोहित वर्ग
👉 तीसरा वैज्ञानिक , चिकित्सक तथा खगोलशास्त्री वर्ग
👉 चौथा किसान और अन्य शिल्पकार वर्ग
🔹 उसने बताया कि इस्लाम मे सभी को समन्मना जाता था । उसने भिन्नता धार्मिक अनुसरण में था
🔹 ब्राम्हण वादी परंपरा में अस्पर्शयता को अल बिरुनी ने गलत माना । हर वह चीज़ जो अपवित्र हो जाती है पुनः पवित्रता प्राप्त करने का प्रयास करती है ।
✳️ इब्न बतूता का जीवन :-
🔹 इब्न बतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृत्तांत जिसे रिह ला कहा जाता है , चौदहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा रोचक जानकारियाँ देता है ।
🔹 मोरक्को के इस यात्राी का जन्म तैंजियर के सबसे सम्मानित तथा शिक्षित परिवारों में से एक " जो इस्लामी कानून अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था " में हुआ था ।
🔹 अपने परिवार की परंपरा के अनुसार इब्न बतूता ने कम उम्र में ही साहित्यिक तथा शास्त्ररूढ़ शिक्षा हासिल की ।
🔹 यात्राओं से अर्जित अनुभव को इब्न बतूता ज्यादा महत्त्व देता था :-
🔹 अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत , इब्न बतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था । उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए - नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर - दूर के क्षेत्रों तक गया ।
✳️ इब्न बतूता की यात्राएँ :-
🔹 1332 - 33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया , इराक , फारस , यमन , ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था ।
🔹 मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्न बतूता सन् 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा और दिल्ली तक की यात्रा की |
🔹 1342 ई . में मंगोल शासक के पास दिल्ली सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गयाऔर वह चीन भी गया |
🔹 चीन जाने के अपने कार्य को दोबारा शुरू करने से पहले वह बंगाल तथा असम भी गया । वह जहाज से सुमात्रा भी गया |
✳️ इब्न बतूता की यात्रा वृतांत की विशेषताएँ :-
🔹 चीन के विषय में उसके वृत्तांत की तुलना मार्को पोलो , जिसने तेरहवीं शताब्दी के अंत में वेनिस से चलकर चीन और भारत की भी की यात्रा की थी , के वृत्तांत से की जाती है ।
🔹 इब्न बतूता ने नवीन संस्कृतियों , लोगों , आस्थाओं , मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत को सावधनी तथा कुशलतापूर्वक दर्ज किया ।
✳️ दो भारतीय वस्तुएँ जिससे इब्न बतूता के पाठक अपरिचित थे : ( i ) नारियल ( ii ) पान का पत्ता
✳️ इब्न बतूता द्वारा शहरों का वर्णन :-
🔹 इन्न बतूता ने भारतीय शहरों को अवसरों से भरा पाया ।
🔹 इब्न बतूता ने बताया की अगर किसी के पास कौशल है और इच्छा है तो इस शहर में अवसरों की कमी नहीं है ।
🔹 शहर घनी आबादी वाले और भीड़ भड़ाके वाले थे ।
🔹 सड़के बहुत ही चमक धमक वाली थी ।
🔹 बाजार बहुत ही रंग बिरंगी एवं सुंदर थी ।
🔹 यहाँ के बाजार अलग अलग प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे ।
🔹 इब्न बतूता ने दिल्ली को एक बड़ा शहर बताया और बताया की यह भारत में सबसे बड़ा है ।
🔹इब्न बतूता बताता है की दौलताबाद भी दिल्ली से कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था ।
🔹बहुत सारे बाजारों में मंदिर और मस्जिद दोनों होते थे ।
🔹 इब्न बतूता ने बताया की भारत में मलमल का कपड़ा महंगा था और केवल धनि आदमी ही उन्हें पहन सकते थे ।
✳️ इब्न बतूता द्वारा संचार प्रणाली का वर्णन :-
🔹 इब्न बतूता ने बताया की भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी :
👉 अश्व डाक व्यवस्था
👉 पैदल डाक व्यवस्था
✳️ अश्वडाक व्यवस्था :-
🔹 इसे उलुक भी कहा जाता था | इस व्यवस्था में हर 4 मील पर राजकीय घोड़े खड़े रहते थे और घोड़े सन्देश लेकर जाते थे ।
✳️ पैदल डाक व्यवस्था :-
🔹 इस व्यवस्था में प्रत्येक मील पर तीन अवस्थान होते थे जिन्हें दावा कहा जाता है । इसमें संदेशवाहक के हाथ में छड लिए दौड़ लगाता है और उसकी छड में घंटियां बंधी होती थी | हर मील पर एक संदेशवाहक लिए तैयार रहता था |
✳️ फ्रांस्वा बर्नियर ( एक यात्री ) :-
🔹 फ्रांस का रहने वाला फ्रांसवा बर्नियर एक चिकित्सक ( doctor ) था | फ्रांस्वा बर्नियर एक दार्शनिक और इतिहासकार भी था | फ्रांस्वा बर्नियर भारत काम की तलाश में आया था ।
🔹फ्रांस्वा बर्नियर 1656 - 1668 भारत मे 12 साल रहा ।
🔹 फ्रांस्वा बर्नियर मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था | बर्नियर शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह का चिकित्सक था |
✳️ बर्नियर की लिखित पुस्तक : " ट्रेवल इन द मुग़ल एंपायर " Travels In Mughal Empire है ।
✳️ बर्नियर के लेखनी की विशेषताएँ :-
🔹 बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबंधित था । उसने भारत में जो भी देखा , वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करने के प्रति अधिक चिंतित था , विशेष रूप से वे स्थितियाँ जिन्हें उसने अवसादकारी पाया ।
🔹 उसका विचार नीति - निर्माताओं तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ऐसे निर्णय ले सके जिन्हें वह " सही " मानता था ।
🔹 बर्नियर के ग्रंथ ' ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर अपने गहन प्रेक्षण , आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के सके वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया गया है ।
🔹 वह निरंतर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा , सामान्यतया यूरोप की श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए ।
✳️ बर्नियर द्वारा पूर्व और पश्चिम की तुलना :-
🔹 बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में उसने विवरण लिखे ।
🔹 वह सामान्यतः भारत में जो देखता था उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था । उसने अपनी प्रमुख कृति को फ़्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया था और उसके कई अन्य कार्य प्रभावशाली अधिकारीयों और मंत्रियों को पत्रों के रूप में लिखे गए थे ।
🔹 लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया ।
✳️ वर्नियर द्वारा भारत का चित्रण :-
🔹 बर्नियर का भारत का चित्रण द्वि - विपरीतता के नमूने पर आधरित है , जहाँ भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है , या फिर यूरोप का “ विपरीत " जैसा कि कुछ इतिहासकार परिभाषित करते हैं ।
🔹 उसने जो भिन्नताएँ महसूस की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया , जिससे भारत , पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो ।
✳️ बर्नियर द्वारा भारतीय समाज का वर्णन :-
🔹 निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था और उसने भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों , दोनों के लिए हानिकारक माना ।
🔹 भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है , जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग , जो अल्पसंख्यक होते हैं , के द्वारा आधीन बनाया जाता है ।
🔹 गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था ।
🔹 बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है , " भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है । "
✳️ बर्नियर द्वारा मुग़ल साम्राज्य का वर्णन :-
🔹 बर्नियर ने मुग़ल साम्राज्य को इस रूप में देखा - वह कहता है " इसका राजा भिखारियों और क्रूर लोगो का राजा था | इसके शहर और नगर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे और इसके खेत झाड़ीदार तथा घातक दलदल से भरे हुए थे और इसका मात्र एक ही कारण था - राजकीय भूस्वामित्व ।
✳️ शिविर नगर :-
🔹 बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को " शिविर नगर " कहता है । वह ऐसा इसलिए कहता था क्योंकि ये ऐसे नगर थे जो अपने अस्तित्व में बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे | उसका मानना था कि ये नगर राजकीय दरबार के आने पर तो ये नगर अस्तित्व में आ जाते थे और राजदरबार के चले जाने पर नगर भी तेजी से समाप्त हो जाता था |
✳️ बर्नियर द्वारा नगरों का वर्णन :-
🔹 वह ऐसे नगरों का वर्णन करता है जो राजदरबार के आने से नगर बन जाता है और चले जाने से अस्तित्वहीन हो जाते है , इसे वह शिविर नगर कहता है ।
🔹 वह और भी कई प्रकार के नगरों का वर्णन करता है जो अस्तित्व में थे जैसे - उत्पादन केंद्र , व्यापारिक नगर , बंदरगाह नगर , धर्मिक केंद्र , तीर्थ स्थान आदि । इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है ।
✳️ व्यापारी वर्ग :-
🔹 बर्नियर व्यापारी वर्ग के बारे में निम्न बातें कहता है -
🔹 व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधे से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे । पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ । अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था ।
✳️ शहरों के व्यवसायी वर्ग :-
शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक ( हकीम अथवा वैद्य ) , अध्यापक ( पंडित या मुल्ला ) , अधिवक्ता ( वकील ) , चित्रकार , वास्तुविद , संगीतकार , सुलेखक आदि सम्मिलित थे । जहाँ कई राजकीय प्रश्रय पर आश्रित थे , कई अन्य संरक्षकों या भीड़भाड़ वाले बाजार में आम लोगों की सेवा द्वारा जीवनयापन करते थे ।
✳️ दास और दासियाँ :-
बाजार में रखी अन्य वस्तुओं की तरह दास और दासियों के खरीद - बिक्री होती थी और नियमित रूप से भेंट स्वरुप दिए जाते थे । इनका निम्न उपयोग था -
🔹 ( 1 ) सुल्तान के कुछ दासियाँ संगीत में निपुण थी |
🔹 ( ii ) सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था ।
🔹 ( iii ) दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था |
🔹 ( iv ) पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में इनकी सेवाएँ ली जाती थी ।
🔹 ( v ) दासों की कीमत , विशेष रूप से उन दासियों की , जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी , बहुत कम होती थी ।
✳️ सती प्रथा :-
🔹 सती कुछ पुरातन भारतीय समुदायों में प्रचलित एक ऐसी धार्मिक प्रथा थी, जिसमें किसी पुरुष की मृत्त्यु के बाद उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में स्वयमेव प्रविष्ट होकर आत्मत्याग कर लेती थी।



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