📚विषय  - 2 📚
👉 राजा , किसान और नगर 👈

👉 इस अध्याय में हम 16 महाजनपद के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे और जानेंगे की किस प्रकार यहाँ आर्थिक राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था थी ।

👉  हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद वैदिक सभ्यता आई , वैदिक सभ्यता आर्यों के द्वारा बनाई गई सभ्यता थी | 

👉 वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी , जो की 1500 ई . पू . से 600 ई . पू . तक चली , वैदिक काल में ही चारो वेदों की रचना हुई , वैदिक सभ्यता के बाद महाजनपद काल आया इस समय नए नगरो का विकास हुआ | इस 



✳️ वैदिक सभ्यता :-

👉 आर्य लोग
👉 संस्कृत
👉 चार वेद = ( 1 ) ऋग्वेद ( 2 ) यजुर्वेद ( 3 ) सामवेद ( 4 ) अर्थववेद

✳️ वैदिक काल :-

👉 ( 1 ) ऋग्वेद = जैन ओर बोद्ध धर्म आया ।
👉 ( 2 ) उत्तर वैदिक काल = मौर्य साम्राज्य की स्थापना । नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित कर चंदगुप मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी ।

✳️ चन्द्रगुप्त मौर्य :-


🔹 चंद्रगुप्त मौर्य(chandragupta maurya) का जन्म 340 ईसवी पूर्व में पटना के बिहार जिले में हुआ था। भारत के प्रथम हिन्दू सम्राट थे। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु ( विष्णुगुप्त ,कौटिल्य , चाणक्य ) थे ।

✳️ ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का अर्थ : -

🔹1830 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिन्सेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकला था | 

🔹 ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग शुरू शुरू के अभिलेखों और सिक्को पर किया जाता था | 

🔹  जेम्स प्रिन्सेप को यह बात पता चल गयी की ज्यादातर अभिलेखों और सिक्को पर पियदस्सी राजा का नाम लिखा था | 

✳️  पियदस्सी :-

🔹 पियदस्सी का मतलब होता है मनोहर मुखाकृति वाला राजा अर्थात जिसका मुह सुंदर हो ऐसा राजा |

✳️ खरोष्ठी लिपि को कैसे पढ़ा गया ? 

🔹 पश्चिमोत्तर से पाए गए अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया था | 

🔹 इस क्षेत्र में हिन्दू - यूनानी शासक शासन करते थे और उनके द्वारा बनवाये गए सिक्को से खरोष्ठी लिपि के बारे में जानकारी मिलती है । 

🔹 उनके द्वारा बनवाये गए सिक्कों में राजाओं के नाम यूनानी और खरोष्ठी में लिखे गए थे | 

🔹 यूनानी भाषा पढने वाले यूरोपीय विद्वानों में अक्षरों का मेल किया |

✳️ ब्राह्मी लिपि को कैसे पढ़ा गया ? 

🔹 ब्राह्मी काफी प्राचीन लिपि है | 

🔹 आज हम लगभग भारत में जितनी भी भाषाएँ पढ़ते हैं उनकी जड़ ब्राह्मी लिपि ही है | 

🔹 18वीं सदी में यूरोपीय विद्वानों ने भारत के पंडितों की मदद से बंगाली और देवनागरी लिपि में बहुत सारी पांडुलिपियाँ पढ़ी और अक्षरों को प्राचीन अक्षरों से मेल करने का प्रयास किया | 

🔹 कई दशकों बाद जेम्स प्रिंसप में अशोक के समय की ब्राह्मी लिपि का 1838 ई . में अर्थ निकाला |

✳️ सिक्के किस प्रकार के होते थे ?

🔹 व्यापार करने के लिए सिक्कों का प्रयोग किया जाता था | 

🔹  चांदी और तांबे के आहत सिक्के ( 6वी शताब्दी ई . पू ) सबसे पहले प्रयोग किये गए | 

🔹 जिस समय खुदाई की जा रही थी , तब यह सिक्के प्राप्त हुए । 

🔹  इन सिक्कों को राजा ने जारी किया था या ऐसा भी हो सकता है की कुछ अमीर व्यापारियों ने सिक्को को जारी किया हो | 

🔹 शासकों के नाम और चित्र के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्दू यूनानी शासकों ने जारी किये थे | 

🔹  सोने के सिक्के सबसे पहले कुषाण राजाओं ने जारी किये थे , और इन सिक्कों का वजन और आकर उस समय के रोमन सिक्कों के जैसा ही हुआ करता था | 

🔹 पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में यौधेय शासकों ने तांबे के सिक्के जारी किये थेजों की हजारों की संख्या में वहाँ से मिले हैं । 

🔹  सोने के सबसे बेहतरीन सिक्के गुप्त शासकों ने जारी किए थे |




✳️ सोलह महाजनपद :-

🔹 प्रारंभिक भारतीय इतिहास में छठी सदी ई . पू . को एक अहम बदलावकारी काल मानते है । इस काल को अक्सर प्रारंभिक राज्यों , नगरों , लोहे के बढ़ते इस्तेमाल एवं सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है ।

🔹  इसी समय में बौद्ध तथा जैन सहित भिन्न - भिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ । बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का जिक्र मिलता है । 

🔹 हालांकि महाजनपदों के नाम की तालिका इन ग्रंथों में एकबराबर नहीं है किन्तु वज्जि , मगध कोशल , कुरु , पांचाल , गांधार एवं अवन्ति जैसे नाम अकसर मिलते हैं । इससे यह स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद सबसे अहम महाजनपदों में गिने जाते होंगे ।

🔹अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन था ।

🔹 गण और संघ के नाम के राज्यों में लोगे का समूह शासन करता था ।

🔹हर जनपद की राजधानी होती थी जिसे किल्ले से घेरा जाता था । 

🔹 किलेबंद राजधानियों के रख - रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए अधिक धन की जरूरत थी । 

🔹 शासक किसानों और व्यपारियो से कर वसूलते थे ।

🔹 ऐसा हो सकता है कि पड़ोसी राज्यों को लूट कर धन इकटा किया जाता हो । 

🔹 धीरे - धीर कुछ राज्य स्थाई सेना और नोकरशाही रखने लगे ।

✳️ मगध महाजनपद इतना समृद्ध क्यों था और शक्तिशाली महाजनपद बनने के कारण क्या थे ? 

🔹 ये प्राकृतिक रूप से सुरक्षित था । इस जनपद के ईद गिर्द पहाड़िया थी जो प्राकृतिक रूप से इसकी रक्षा करती थी ।

🔹 यह उपजाऊ भूमि थी । गंगा और सोन नदी के पानी से सिंचाई के साधन उपलब्ध थे जिसके कारण यहां फसल अच्छी होती थी।

🔹 जंगलों में हाथी उपलब्ध थे । जंगल में हाथी पाए जाते थे जो कि सेना के बहुत काम आते थे ।

🔹 योग्य तथा महत्वकांक्षी शासक थे । मगध के राजा बहुत योग्य और शक्तिशाली थे ।

🔹 गंगा और सोन नदी के पानी से सिंचाई होती थी जिससे व्यापार में वृद्धि होती थी ।

🔹 लोहे की खदानें थी जिससे सेना में हथियार बनाए जाते थे ।

✳️ एक आरंभिक सम्राज्य :-

🔹मगध के विकास के साथ - साथ मौर्य सम्राज्य का उदय हुआ ।

🔹 मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्र गुप्त मौर्य ने ( 321 ई . पू ) में की थी जो कि पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था ।

✳️ मौर्य वंश के बारे में जानकारी के स्रोत :-

🔹 मूर्तिकला 
🔹समकालीन रचनाएँ मेगस्थनीज द्वारा लिखत इंडिका पुस्तक : चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मंत्री द्वारा लिखी गई पुस्तक से जानकारी मिली है ।
🔹 अर्थशास्त्र पुस्तक ( चाणक्य द्वारा लिखित ) : इसके कुछ भागो की रचना कौटिल्य या चाणक्य ने की थी इस पुस्तक से मौर्य शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
🔹जैन , बोद्ध , पौराणिक ग्रंथों से : जैन ग्रंथ बौद्ध ग्रंथ पौराणिक ग्रंथों तथा और भी कई प्रकार के ग्रंथों से मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
🔹 अशोक के स्तमभो से : अशोक द्वारा लिखवाए गए स्तंभों से भी मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है ।
🔹 अशोक पहला सम्राट था जिसने अधिकारियों ओर प्रजा के लिए संदेश प्रकृतिक पत्थरो ओर पॉलिश किये हुए स्तम्भों पर लिखवाए थे ।

✳️ मौर्य साम्राज्य में प्रशासन :-

🔹 पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे 
🔹 राजधानी - पाटलिपुत्र 
🔹 प्रांतीय केंद्र :- तक्षशिला , उज्जयिनी , तोसलि , सुवर्णगिरी 
🔹पश्चिम मे पाक से आंध्र प्रदेश , उड़ीसा और उत्तराखण्ड तक हर स्थान पर  एक जैसे संदेश उत्कीर्ण किर गए थे । 

🔹 ऐसा माना जाता है इस साम्राज्य में हर जगह एक समान प्रशासनिक व्यवस्था नहीं रही होगी क्योकि अफगानिस्तान का पहाड़ी इलाका दूसरी तरफ उडीसा तटवर्ती क्षेत्र ।
🔹तक्षशिला और उज्जयिनी दोनो लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग थे ।
🔹 सुवर्णगिरी ( सोने का पहाड़ ) कर्नाटक में सोने की खाने थी ।
🔹साम्राज्य के संचालन में भूमि और नदियों दोनों मार्गो से आवागमन बना रहना आवश्यक था । राजधानी से प्रांतो तक जाने में कई सप्ताह या महीने का समय लगता होगा ।

✳️ मेगास्थनीज़ के अनुसार सेना व्यवस्था :-

🔹मेगस्थनीज यूनान का राजदूत और एक महान इतिहासकार था ।
🔹 मेगस्थनीज ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम इंडिका था , इस पुस्तक से हमें मौर्य साम्राज्य की जानकारी मिलती है । 
🔹 मेगस्थनीज ने बताया की मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए 1 समिति और 6 उप्समीतियाँ थी | 

✳️ भूमिदान :-

 🔹 इतिहासकारों को बहुत प्राचीन समय के ऐसे सबूत मिले हैं जिन्हें देख कर यह पता चलता है की काफी पुराने समय से ही भूमि को दान किया जाता था |
🔹 इतिहासकारों को भूमिदान के अभिलेख मिले हैं जिनमे से कुछ पत्थरों पर लिखे गए थे और कुछ ताम्र पत्रों पर खुदे होते थे । 
🔹ज्यादातर अभिलेख संस्कृत में लिखे गए थे । 
🔹 प्रभावती गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी , और उसकी शादी दक्कन के वाकाटक परिवार में हुयी थी ।
🔹 हमने ऐसा पढ़ा है की धर्मशास्त्रों के अनुसार महिलाओं का भूमि पर अधिकार नहीं था ।
🔹लेकिन एक अभिलेख से पता चलता है की प्रभावती गुप्त भूमि की मालकिन थी और उसने भूमि को दान में भी दिया था । 
🔹 ऐसा शायद इसलिए भी हो सकता है क्योंकि प्रभावती एक रानी थी इसलिए उनके पास शायद कुछ ज्यादा अधिकार रहे हों ।

👉 जो की इस प्रकार से थी : 

🔹 1 . नौसेना का संचालन 
🔹 2 . यातायात और खान पान का संचालन 
🔹 3 . पैदल सैनिको का संचालन 
🔹 4 . अश्वारोहियो
🔹 5 . रथारोहियो
🔹6 . हाथियों का संचालन

✳️ अशोक ने धम्म का प्रचार किया :-

🔹 धम्म के सिद्धांत साधारण तथा सार्वभौमिक थे । 
🔹धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस संसार में और इसके बाद में संसार में अच्छा रहेगा ।

✳️ धम्म से अभिप्राय :-

🔹 धम्म एक नियमावली अशोक ने अपने अभिलेखो के माध्यम से धम्म का प्रचार किया । 

👉 इसमें बड़ों के प्रति आदर ।
👉 सन्यासियों और ब्रामणो के प्रति उदारता । 
👉 सेवको और दासों के साथ उदार व्यवहार ।
👉 दूसरे के घर्मों और परंपराओं का आदर ।

✳️ अशोक ने धम्म - प्रचार के लिए क्या किया था ?

🔹 अशोक ने धम्म - प्रचार के लिए एक विशेष अधिकारी वर्ग नियुक्त किया जिसे धम्म महामात्य कहा जाता था । उसने तेरहवें शिलालेख लिखा है कि मैंने सभी धार्मिक मतों के लिये धम्म महामात्य नियुक्त किए हैं । वे सभी धर्मों और धार्मिक संप्रदायों की देखभाल करेंगे । वह अधिकारी अलग - अलग जगहों पर आते - जाते रहते थे । उनको प्रचार कार्य के लिए वेतन दिया जाता था । उनका काम स्वामी , दास , धनी , गरीब , वृद्ध , युवाओं की सांसारिक और आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करना था ।

✳️ अशोक के धम्म की मुख्य विशेषताएं :-

🔹 अशोक का धम्म एक नैतिक नियम या सामान्य विचार संहिता थी इसकी मुख्य विशेषताएं थी : 

👉 नैतिक जीवन व्यतीत करना : इस धम्म के अनुसार कहा गया है कि मनुष्य को सामान्य एवं सदाचार तरीके से जीवन व्यतीत करना चाहिए ।

👉 वासनाओं पर नियंत्रण रखना : इस धम्म के अनुसार बाहरी आडंबर और अपने वासनाओं पर नियंत्रण रखने की बात कही गई है ।

👉 दूसरे धर्मों का सम्मान : अशोक के धर्म के अनुसार दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखना चाहिए ।

👉  जीव जंतु को क्षति ना पहुंचाना : अशोक के धम्म के अनुसार पशु पक्षियों जीव - जंतुओं की हत्या या उन्हें क्षति नही पहुँचना ।

👉 सबके प्रति दयालु बनना : अपने नौकर और आपने से छोटेके प्रति दयालु बन्ना और सभी का आदर करना ।

👉 सभी का आदर करना : माता - पिता गुरुजनों मित्रों भिक्षुओं सन्यासियों अपने से छोटे और अपने से बड़े सभी का आदर करना ।

✳️ क्या मौर्य साम्राज्य महत्वपूर्ण है ।

🔹 19 वी शताब्दी मे जब इतिहासकारो में जब भारत के प्रारंभिक इतिहास की रचना करनी शुरू की तो मौर्य साम्राज्य को इतिहास का मुख्य काल माना गया । इस समय भारत गुलाम था ।

🔹अदभुत कला का साक्ष्य :-

👉 मूर्तियाँ ( सम्राज्य की पहचान )
👉 अभिलेख ( दूसरो से अलग ) 
👉 अशोक एक महान शासक था 
👉 मौर्य सम्राज्य 150 वर्ष तक ही चल पाया ।

✳️ दक्षिण के राजा और सरदार :-

🔹 दक्षिण भारत में ( तमिलनाडु / आंध्रप्रदेश / केरल ) में चोल , चेर एवं पांड्य जैसी सरदारियो का उदय हुआ । ये राज्य सृमद्ध तथा स्थाई थे ।
🔹 प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है । 
🔹सरदार | राजा लंबी दूरी के व्यपार से राजस्व जुटाते थे । 
🔹 इनमें सातवाहन राजा भी थे ।

✳️ सरदार और सरदारी :-

🔹 सरदार एक ताकतवर व्यक्ति होता है जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता है एवं नहीं भी । उसके समर्थक उसके खानदान के लोग होते हैं । सरदार के कार्यों में विशेष अनुष्ठान का संचालन , युद्ध के समय नेतृत्व करना एवं विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाना सम्मिलित है । वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है ( जबकि राजा लगान वसूली करते हैं ) , एवं अपने समर्थकों में उस भेंट का वितरण करता है । सरदारी में प्रायः कोई स्थायी सेना अथवा अधिकारी नहीं होते हैं ।

✳️ दैविक राजा :-

🔹 देवी - देवता की पूजा से राजा उच्च उच्च स्थिति हासिल करते थे । कुषाण - शासक ने ऐसा किया । 

🔹 U. P में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासको ने विशाल काय मूर्ति स्थापित की ।

🔹 अफगानिस्तान में भी ऐसा किया इन मूर्तियो के माध्यम से राजा खुद को देवतुल्य पेश करते थे ।

✳️ जनता के बीच राजा की छवी कैसी थी ? 

🔹 इसके साक्ष्य ज्यादा नहीं प्राप्त है । 

🔹 जातक कथाओं से इतिहासकारों ने पता लगाने का प्रयास किया ।

🔹 ये कहानियाँ मौखिक थी। फिर बाद में इन्हें पालि भाषा में लिखा गया ।

🔹 गंदतिन्दु जातक कहानी → प्रजा के दुख के बारे में बताया गया ।

✳️ छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से उपज बढ़ाने के तरीके :-

 🔹 उपज बढ़ाने के लिए हल का प्रयोग किया गया 

🔹 लोहे की फाल का प्रयोग किया गया यह भी उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था ।

🔹 फसल को बढ़ाने के लिए कृषक समुदाय ने मिलकर सिंचाई के नए नए साधन को बनाना शुरू किया ।

🔹  फसल की उपज बढ़ाने के लिए कई जगह पर तलाब , कुआँ और नहर जैसे सिंचाई साधन को बनाया गया जो की उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था ।

✳️ ग्रामीण समाज में विभिन्नता :-

🔹 उपज बढ़ने का लाभ सबको नही मिला ।

🔹 भूमिहीन किसान भी थे । 

🔹 बडे जमीदार ग्राम या प्रधान ताकतवर होते थे ।

🔹 जबकि छोटे किसान कमजोर वर्ग होता था। 

🔹 प्रधान का पद अक्सर वशानुगत होता था ।

✳️ सिक्के और राजा :-

🔹 सिक्के के चलन से व्यापार आसान हो गया ।

🔹चॉदी । ताँबे के आहत सिक्के प्रयोग में लाए ।

🔹 ये सिक्के खुदाई में मिले है ।

🔹आहत सिक्के पर प्रतीक चिहन भी थे ।

🔹  सिक्के राजाओं ने जारी किए थे ।

🔹 शासको की प्रतिमा तथा नाम के साथ सबसे पहले सिक्के यूनानी शासको ने जारी किए । 

🔹 सोने के सिक्के सर्वप्रथम कुषाण राजाओ ने जारी किए थे ।

🔹 मूल्यांकन वस्तु के विनिमय में सोने के सिक्के का प्रयोग किया जाता था ।

🔹 दक्षिण भारत मे बड़ी तादात में रोमन सिक्के मील है।

🔹 सोने के सबसे आकर्षक सिक्के गुप्त शासको ने जारी किए ।

✳️ अभिलेखों की साथ्य सीमा :-

🔹  हल्के ढंग से उत्कीर्ण अक्षर : कुछ अभिलेखों में अक्षर हल्के ढंग से उत्तीर्ण किए जाते हैं जिनसे उन्हें पढ़ना बहुत मुश्किल होता है ।

🔹 कुछ अभिलेखों के अक्षर लुप्त : कुछ अभिलेख नष्ट हो गए हैं और कुछ अभिलेखों के अक्षर लुप्त हो चुके हैं जिनकी वजह से उन्हें पढ़ पाना बहुत मुश्किल होता है ।

🔹 वास्तविक अर्थ समझने में कठिनाई : कुछ अभिलेखों में शब्दों के वास्तविक अर्थ को समझ पाना पूर्ण रूप से संभव नहीं होता जिसके कारण कठिनाई उत्पन्न होती है ।

🔹  अभिलेखों में दैनिक जीवन के कार्य लिखे हुए नहीं होते हैं : अभिलेखों में केवल राजा महाराजा की और मुख्य बातें लिखी हुई होती है जिनसे हमें दैनिक जीवन में आम लोगों के बारे में दैनिक कामों के बारे में पता नहीं चलता ।

🔹 अभिलेख बनवाने वाले के विचार : अभिलेख को देखकर यह पता चलता है कि जिसने अभिलेख बनवाया है उसका विचार किस प्रकार से हैं इसके बारे में हमें जानकारी प्राप्त होती है ।