👉 बंधुत्व , जाति तथा वर्ग 👈
🔹 600 BCE से 600 CE की अवधि के दौरान भारत के आर्थिक और राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए ।
🔹 इस अवधि के दौरान हुए परिवर्तनों ने समकालीन समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा था ।
🔹 कृषि के विस्तार के साथ एक नया परिवर्तन होने लगा ।
🔹 इस अवधि के दौरान विभिन्न शिल्प और विशिष्ट सामाजिक समूहों का उद्भव भी देखा गया ।
🔹 धन के असमान वितरण के परिणामस्वरूप सामाजिक विषमताएं बढ़ने लगीं ।
🔹 इतिहासकार ने कई कारणों से पाठ्य परंपरा का उपयोग किया ।
✳️ महाभारत :-
🔹महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है , जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है । कभी कभी इसे केवल भारत कहा जाता है । यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक , पौराणिक , ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं ।
🔹 विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य , हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है । इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है ।
🔹 इतिहासकारों का मानना है कि यह वेद व्यास द्वारा लिखा गया था , लेकिन अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि यह कई लेखकों की रचना है । इसमे केवल 8800 श्लोक थे बाद में छंदों की संख्या बढ़कर एक लाख हो गई । 1919 में एक महत्वपूर्ण काम शुरू हुआ , वीएस सुथंकर के नेतृत्व में " एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान " जिन्होंने महाभारत के एक महत्वपूर्ण संस्करण को तैयार करने के लिए समर्थन दिया ।
✳️ महाभारत की विशिष्टता :-
🔹इतिहासकार जांचते हैं कि क्या ग्रंथ प्राकत , पाली या संस्कृत भाषाओं में लिखे गए थे । वे उन लेखकों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं जिनके दष्टिकोण और विचारों ने पाठ को आकार दिया ।
🔹 महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों की तुलना में कहीं अधिक सरल है । इतिहासकार पाठ की विषयवस्तु को दो व्यापक शीर्षों के अंतर्गत वर्गीकृत करते हैं , कथा युक्त कथाएँ और उपदेश युक्त युक्तियाँ और सामाजिक मानदंड । महाभारत को कई चरणों में लिखा गया है । यह किसी एक लेखक का काम नहीं है । हालांकि , यह पारंपरिक रूप से वेद व्यास नामक एक ऋषि को जिम्मेदार ठहराया है ।
🔹महाभारत में लड़ाई , जंगलों , महलों और बस्तियों का विशद वर्णन है । महाभारत के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रकरण में से एक द्रौपदी का पांच पांडवों के साथ विवाह है ।
🔹 यह सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बीच बहुपतित्व ( एक महिला के कई पति होने का अभ्यास ) का सुझाव देता है ।
🔹 कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बहुपत्नीत्व ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण से अवांछनीय है , लेकिन युद्ध के समय में महिलाओं की कमी के कारण यह हिमालय क्षेत्र में प्रचलित था ।
✳️ महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण :-
🔹1919 में संस्कृत भाषा के एक महान विद्वान ( जिनका नाम वी . एस . सुक्थांकर था ) , के नेतृत्व में एक बहुत महत्वकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई ।
🔹 इस परियोजना का उद्देश्य था महाभारत नामक महान महाकव्य की विभिन्न जगहों से प्राप्त विभिन्न पांडुलिपियों को इकठ्ठा करके एक किताब का रूप देना |
🔹 बहुत सारे बड़े बड़े विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण ( Edition ) तैयार करने की जिम्मेदारी उठाई । विद्वानों ने सभी पांडुलिपियों में पाए गए श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ निकाला , विद्वानों ने उन श्लोको को चुना जो लगभग सभी पांडुलिपियों में लिखे हुए थे | इन सब का प्रकाशन लगभग 13000 पन्नो में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में हुआ | इस परियोजना को पूरा करने में 47 साल लगे |
✳️ परिवार :-
🔹एक ही परिवार के लोग भोजन मिल बाँट के करते हैं । परिवार के लोग संसाधनों का प्रयोग मिल बाँट कर करते हैं । परिवार के लोग एक साथ रहते थे । परिवार के लोग एक साथ मिलकर पूजा पाठ करते हैं । कुछ समाजों में चचेरे और मौसेरे भाई बहनों को भी खून का रिश्ता माना जाता ।
✳️ पितृवंशिक व्यवस्था के आदर्श :-
🔹 पितृवंशिकता हमारे देश मे पहले से मौजूद थी । महाभारत कुछ इसी तरह की कहानी है यह भाइयों के दो दलों कौरव और दूसरा पांडव के बीच जमीन लेकर और सत्ता को लेकर हुए युद्ध की एक कहानी है |जिसमे पांडवो की जीत हुई थी । जीत होने के बाद उत्तराधिकार को पितृवंशिय घोषित किया गया ।
✳️ पितृवन्शिकता :-
🔹 पितृवन्शिकता में पिता के म्रत्यु के बाद पिता की सारी संपत्ति और जमीन एवं जायदाद बेटे के नाम कर दी जाती है । और अगर बात की जाए राजाओं की तो राजा की म्रत्यु के बाद उसका सिंहासन उसके पुत्र को सौप दिया जाता है । तथा कभी पुत्र न होने पर सम्बधी भाई को उत्तराधिकारी बनाया जाता था ।
✳️ विवाह के नियम :-
👉 अंतविवाह पद्धति = अंतविवाह पद्धति का अर्थ होता है गोत्र के अंदर कुल जाति में विवाह ।
👉 बहिर्विवाह पद्धति = बहिर्विवाह पद्धति का अर्थ होता है गोत्र के बाहर के जाति में विवाह ।
🔹 पितृवंशिय समाज मे पुत्र का बहुत महत्व था । पुत्री को अलग प्रकार से देखा जाता था । पुत्री का विवाह गोत्र से बाहर किया जाता तथा कन्यादान पिता का अहम कर्तव्य माना जाता था ।
🔹 नए नगरो का उद्भव हुआ सामाजिक नियम बदलने लगे । क्रय - विक्रय के लिए लोग नगरो में आते थे । विचारों का आदान - प्रदान होने लगा । इसलिए प्रारंभिक विश्वासो एव व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगे । इन्ही को चुनौती देने के लिए ब्राह्मणो ने आचार संहिता तैयार की । इसका पालन सभी को करना था ।
🔹 500 ई० पू० से इन मानदडों का संकलन धर्मसूत्र , धर्मशास्त्र ग्रन्थो में हुआ । इसमे सबसे अहम मनुस्मृति था ।
🔹 धर्मशास्त्र में 8 प्रकार के विवाह बताए गए है जिसमे प्रथम 4 प्रकार के उत्तम थे ।
✳️ स्त्री का गोत्र :-
🔹 गोत्र पध्दति 1000 ई० पू० प्रचलन में आई । इसका मुख्य उद्देश्य गोत्र के आधार पर ब्राह्मणों का वर्गीकरण करना था ।
🔹 प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता है । उस गोत्र के सदस्यों को ऋषि का वंशज माना जाता था ।
✳️ गोत्र के नियम :
👉 गोत्र का पहला नियम : यह था की शादी के बाद स्त्रियों को पिता की जगह पति का गोत्र अपनाना पड़ता था |
👉 गोत्र का दूसरा नियम : गोत्र का दूसरा नियम यह था की एक ही गोत्र के सदस्य आपस में शादी नहीं कर सकते थे |
🔹 सातवाहन राजाओ में यह प्रथा विपरीत थी । सातवाहन राजाओ के नाम से पता लगा कि वहाँ स्त्री को विवाह के बाद भी आपने पिता का गोत्र रखते थे ।
🔹 सातवाहन बहुपत्नी प्रथा को मानते थे ।
✳️ बहुपत्नी और बहुपति प्रथा :
👉 बहुपत्नी प्रथा में एक से ज्यादा स्त्रियों से शादी की जाती है | ( ऐसा सातवाहन राजाओ में होता था )
👉 बहुपति प्रथा में एक से अधिक पुरुषों से शादी की जाती है | ( उदाहरण के लिए : द्रोपदी )
✳️ क्या माताओं को महत्वपूर्ण समझा जाता था ?
🔹 इतिहास में बहुत से ऐसे किस्से हैं जिनसे पता चलता है की 600 ई . पू से 600 ई . के शुरूआती समाज में माताओं को भी महत्वपूर्ण समझा जाता था ।
🔹 ऐसा ही एक किस्सा है सातवाहन राजाओं का , सातवाहन राजा अपने नाम से पहले अपनी माता का नाम लगाते थे जिससे यह पता चलता है की माताओं को भी महत्वपूर्ण माना जाता था |
🔹 इस अवधि के दौरान हुए परिवर्तनों ने समकालीन समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा था ।
🔹 कृषि के विस्तार के साथ एक नया परिवर्तन होने लगा ।
🔹 इस अवधि के दौरान विभिन्न शिल्प और विशिष्ट सामाजिक समूहों का उद्भव भी देखा गया ।
🔹 धन के असमान वितरण के परिणामस्वरूप सामाजिक विषमताएं बढ़ने लगीं ।
🔹 इतिहासकार ने कई कारणों से पाठ्य परंपरा का उपयोग किया ।
✳️ महाभारत :-
🔹महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है , जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है । कभी कभी इसे केवल भारत कहा जाता है । यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक , पौराणिक , ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं ।
🔹 विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य , हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है । इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है ।
🔹 इतिहासकारों का मानना है कि यह वेद व्यास द्वारा लिखा गया था , लेकिन अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि यह कई लेखकों की रचना है । इसमे केवल 8800 श्लोक थे बाद में छंदों की संख्या बढ़कर एक लाख हो गई । 1919 में एक महत्वपूर्ण काम शुरू हुआ , वीएस सुथंकर के नेतृत्व में " एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान " जिन्होंने महाभारत के एक महत्वपूर्ण संस्करण को तैयार करने के लिए समर्थन दिया ।
✳️ महाभारत की विशिष्टता :-
🔹इतिहासकार जांचते हैं कि क्या ग्रंथ प्राकत , पाली या संस्कृत भाषाओं में लिखे गए थे । वे उन लेखकों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं जिनके दष्टिकोण और विचारों ने पाठ को आकार दिया ।
🔹 महाभारत में प्रयुक्त संस्कृत वेदों की तुलना में कहीं अधिक सरल है । इतिहासकार पाठ की विषयवस्तु को दो व्यापक शीर्षों के अंतर्गत वर्गीकृत करते हैं , कथा युक्त कथाएँ और उपदेश युक्त युक्तियाँ और सामाजिक मानदंड । महाभारत को कई चरणों में लिखा गया है । यह किसी एक लेखक का काम नहीं है । हालांकि , यह पारंपरिक रूप से वेद व्यास नामक एक ऋषि को जिम्मेदार ठहराया है ।
🔹महाभारत में लड़ाई , जंगलों , महलों और बस्तियों का विशद वर्णन है । महाभारत के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रकरण में से एक द्रौपदी का पांच पांडवों के साथ विवाह है ।
🔹 यह सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बीच बहुपतित्व ( एक महिला के कई पति होने का अभ्यास ) का सुझाव देता है ।
🔹 कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बहुपत्नीत्व ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण से अवांछनीय है , लेकिन युद्ध के समय में महिलाओं की कमी के कारण यह हिमालय क्षेत्र में प्रचलित था ।
✳️ महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण :-
🔹1919 में संस्कृत भाषा के एक महान विद्वान ( जिनका नाम वी . एस . सुक्थांकर था ) , के नेतृत्व में एक बहुत महत्वकांक्षी परियोजना की शुरुआत हुई ।
🔹 इस परियोजना का उद्देश्य था महाभारत नामक महान महाकव्य की विभिन्न जगहों से प्राप्त विभिन्न पांडुलिपियों को इकठ्ठा करके एक किताब का रूप देना |
🔹 बहुत सारे बड़े बड़े विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण ( Edition ) तैयार करने की जिम्मेदारी उठाई । विद्वानों ने सभी पांडुलिपियों में पाए गए श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढूँढ निकाला , विद्वानों ने उन श्लोको को चुना जो लगभग सभी पांडुलिपियों में लिखे हुए थे | इन सब का प्रकाशन लगभग 13000 पन्नो में फैले अनेक ग्रन्थ खण्डों में हुआ | इस परियोजना को पूरा करने में 47 साल लगे |
🔷 बंधुता एवं विवाह 🔷
✳️ परिवार :-
🔹एक ही परिवार के लोग भोजन मिल बाँट के करते हैं । परिवार के लोग संसाधनों का प्रयोग मिल बाँट कर करते हैं । परिवार के लोग एक साथ रहते थे । परिवार के लोग एक साथ मिलकर पूजा पाठ करते हैं । कुछ समाजों में चचेरे और मौसेरे भाई बहनों को भी खून का रिश्ता माना जाता ।
✳️ पितृवंशिक व्यवस्था के आदर्श :-
🔹 पितृवंशिकता हमारे देश मे पहले से मौजूद थी । महाभारत कुछ इसी तरह की कहानी है यह भाइयों के दो दलों कौरव और दूसरा पांडव के बीच जमीन लेकर और सत्ता को लेकर हुए युद्ध की एक कहानी है |जिसमे पांडवो की जीत हुई थी । जीत होने के बाद उत्तराधिकार को पितृवंशिय घोषित किया गया ।
🔹 पितृवन्शिकता में पिता के म्रत्यु के बाद पिता की सारी संपत्ति और जमीन एवं जायदाद बेटे के नाम कर दी जाती है । और अगर बात की जाए राजाओं की तो राजा की म्रत्यु के बाद उसका सिंहासन उसके पुत्र को सौप दिया जाता है । तथा कभी पुत्र न होने पर सम्बधी भाई को उत्तराधिकारी बनाया जाता था ।
✳️ विवाह के नियम :-
👉 अंतविवाह पद्धति = अंतविवाह पद्धति का अर्थ होता है गोत्र के अंदर कुल जाति में विवाह ।
👉 बहिर्विवाह पद्धति = बहिर्विवाह पद्धति का अर्थ होता है गोत्र के बाहर के जाति में विवाह ।
🔹 पितृवंशिय समाज मे पुत्र का बहुत महत्व था । पुत्री को अलग प्रकार से देखा जाता था । पुत्री का विवाह गोत्र से बाहर किया जाता तथा कन्यादान पिता का अहम कर्तव्य माना जाता था ।
🔹 नए नगरो का उद्भव हुआ सामाजिक नियम बदलने लगे । क्रय - विक्रय के लिए लोग नगरो में आते थे । विचारों का आदान - प्रदान होने लगा । इसलिए प्रारंभिक विश्वासो एव व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगे । इन्ही को चुनौती देने के लिए ब्राह्मणो ने आचार संहिता तैयार की । इसका पालन सभी को करना था ।
🔹 500 ई० पू० से इन मानदडों का संकलन धर्मसूत्र , धर्मशास्त्र ग्रन्थो में हुआ । इसमे सबसे अहम मनुस्मृति था ।
🔹 धर्मशास्त्र में 8 प्रकार के विवाह बताए गए है जिसमे प्रथम 4 प्रकार के उत्तम थे ।
✳️ स्त्री का गोत्र :-
🔹 गोत्र पध्दति 1000 ई० पू० प्रचलन में आई । इसका मुख्य उद्देश्य गोत्र के आधार पर ब्राह्मणों का वर्गीकरण करना था ।
🔹 प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता है । उस गोत्र के सदस्यों को ऋषि का वंशज माना जाता था ।
✳️ गोत्र के नियम :
👉 गोत्र का पहला नियम : यह था की शादी के बाद स्त्रियों को पिता की जगह पति का गोत्र अपनाना पड़ता था |
👉 गोत्र का दूसरा नियम : गोत्र का दूसरा नियम यह था की एक ही गोत्र के सदस्य आपस में शादी नहीं कर सकते थे |
🔹 सातवाहन राजाओ में यह प्रथा विपरीत थी । सातवाहन राजाओ के नाम से पता लगा कि वहाँ स्त्री को विवाह के बाद भी आपने पिता का गोत्र रखते थे ।
🔹 सातवाहन बहुपत्नी प्रथा को मानते थे ।
✳️ बहुपत्नी और बहुपति प्रथा :
👉 बहुपत्नी प्रथा में एक से ज्यादा स्त्रियों से शादी की जाती है | ( ऐसा सातवाहन राजाओ में होता था )
👉 बहुपति प्रथा में एक से अधिक पुरुषों से शादी की जाती है | ( उदाहरण के लिए : द्रोपदी )
✳️ क्या माताओं को महत्वपूर्ण समझा जाता था ?
🔹 इतिहास में बहुत से ऐसे किस्से हैं जिनसे पता चलता है की 600 ई . पू से 600 ई . के शुरूआती समाज में माताओं को भी महत्वपूर्ण समझा जाता था ।
🔹 ऐसा ही एक किस्सा है सातवाहन राजाओं का , सातवाहन राजा अपने नाम से पहले अपनी माता का नाम लगाते थे जिससे यह पता चलता है की माताओं को भी महत्वपूर्ण माना जाता था |
🔷 सामाजिक विषमताँए 🔷
✳️ वर्ण व्यवस्था :-
👉 A . क्षत्रिय :-
🔹 यह समय पड़ने पर युद्ध करते थे ।
🔹 यह राजाओं को सुरक्षा प्रदान करते थे ।
🔹 वेदों को पढ़ना और यज्ञ कराने का कार्य करते थे ।
🔹 यह जनता के बीच न्याय कराने का कार्य करते थे ।
👉 B . ब्राह्मण :-
🔹 यह पुस्तकों का अध्ययन करते थे ग्रंथों का अध्ययन करते थे ।
🔹 वेदों से शिक्षा प्राप्त करते थे ।
🔹 यज्ञ करवाना और यज्ञ करना इनका कार्य था ।
🔹 यह दान दक्षिणा लेते थे वह देते थे ।
👉 C . वैश्य :-
🔹 यह व्यापार करते थे ।
🔹 पशुपालन करते थे ।
🔹 कृषि करना इनका का मुख्य कार्य था ।
🔹 दान दक्षिणा देना इनके मुख्य कारणों में से एक है ।
👉 D . शुद्र :-
🔹 यह तीनों वर्गों की सेवा करने का कार्य करते थे इनका मुख्य कार्य इन तीनों की सेवा करने का था ।
👉 इन नियमो का पालन करवाने के लिए व्राह्मण ने दो - तीन नीतियां अपनाई थी ।
🔹 वर्ण व्यवस्था ईश्वरीय देन है ।
🔹 शासको को प्रेरित करना कि वर्ण व्यवस्था लागू कराएँ ।
🔹जनता को यकीन दिलाना कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है ।
✳️ क्या हमेशा क्षत्रिय राजा हो सकते हैं ?
🔹 नहीं , यह असत्य है इतिहास में कई ऐसे राजा रहे हैं जो क्षत्रिय नहीं थे
🔹 मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जिसने एक विशाल साम्राज्य पर राज किया था बौद्ध ग्रंथों में यह बताया गया है कि वह क्षत्रिय है लेकिन ब्राह्मण शास्त्र में यह कहा गया है कि वह निम्न कुल के हैं
🔹 सुंग और कण्व मौर्य के उत्तराधिकारी थे जो कि यह माना जाता है कि वह ब्राह्मण कुल से थे
🔹 इन उदाहरण से हमें यह जात होता है कि राजा कोई भी बन सकता था इसके लिए यह जरूरी नहीं था कि वह क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ हो ताकत और समर्थन ज्यादा महत्वपूर्ण था राजा बनने के लिए ।
✳️ जाति :-
🔹 जहाँ वर्ण केवल 4 थे वहाँ जातियाँ बहुत सारी थी ।
🔹 जिन्हें वर्ण में समाहित नही किया उन्हें जातियो में डाल दिया जैसे :- निषाद , सुवर्णकार
🔹 जातियाँ कर्म के अनुसार बनती गई । कुछ लोग दूसरे जीविका को आपने लेते थे ।
✳️ चार वर्गो के परे : अधीनता ओर सँघर्ष :-
🔹ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था से कुछ लोगो को बाहर रखा गया । इन्होंने कुछ वर्गों को " अस्पृश्य घोषित किया ।
🔹 ब्राह्मण अनुष्ठान को पवित्र काम मानते थे ।
🔹ब्राह्मण अस्पृश्यो से भोजन स्वीकार नही करते थे ।
🔹 कुछ काम दूषित मने जाते थे जैसे :- शव का अंतिम संस्कार करना और मृत जानवरो को छूना । इन कामो को करने वाले को चांडाल कहा जाता था ।
🔹 चाण्डालों को छूना और देखना भी पाप समझते थे ।
✳️ मनुस्मृति के अनुसार चाण्डाल के कर्त्तव्य :-
🔹 गाँव से बाहर रहना ।
🔹 फेके बर्तन का प्रयोग करना ।
🔹 मृत लोगो के कपडे पहनना।
🔹 मृत लोगो के आभूषण पहनना ।
🔹 रात में गाँव - नगरो में चलने की मनाही ।
🔹 अस्पृश्यो को सड़क पर चलते हुए करताल बजाना पड़ता था । ताकि दूसरे उन्हें देखने से बच जाए ।
✳️ संसाधन एव प्रतिष्ठा :-
🔹 आर्थिक संबंधों के अध्यन से पता लगा की दस , भूमिहीन खेतिहर मजदूर , मछुआरों , पशुपालक , कृषक , मुखिया , शिकारी , शिल्पकार , वणिक , राजा आदि सभी का सामाजिक स्थान इस बात पर निर्भर करता था कि आर्थिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण कैसा है ।
✳️ सम्पत्ति पर स्त्री , पुरूष के भिन्न अधिकार :-
👉 मनु स्मृति के अनुसार :-
🔹पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति पुत्रों में बाँटी जाती थी।
🔹ज्येष्ट पुत्र को विशेष हिस्सा दिया जाता था ।
🔹विवाह के दौरान मिले उपहार पर स्त्री का अधिकार था ।
🔹यह संपति उसकी संतान को विरासत में मिलती थी ।
🔹पति का उस पर अधिकार नहीं था ।
🔹स्त्री पति की आज्ञा के बिना गुप्त धन संचय नही कर सकती थी ।
🔹उच्च वर्ग की औरत संसाधनों पर अधिकार रखती थी ।
✳️ वर्ण एवं संपति के अधिकार :-
🔹शुद्र के लिए केवल एक जीविका थी →सेवा करना
🔹लेकिन उच्च वर्गों में पुरुषो के लिए अधिक संभावना थी ।
🔹 ब्राह्मण और क्षत्रिय धनी व्यक्ति थे ।
🔹 बौध्दों ने ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था की आलोचना की ।
🔹 बौध्दों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं किया ।
✳️ साहित्यक , स्रोतों का इस्तेमाल :-
🔹 किसी भी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय इतिहासकार कई पहलुओ का ध्यान रखते हैं ।
🔹 भाषा = साधारण भाषा या विशेष भाषा
🔹 ग्रंथ का प्रकार = मंत्र या कथा
🔹 लेखक के विषय में ( दृष्टिकोण )
🔹श्रोताओं का निरीक्षण
🔹ग्रंथ का रचना काल
🔹ग्रंथ की विषयवस्तु
✳️ भाषा एव विषयवस्तु :-
आख्यान
कहानियाँ
👉 ग्रंथ विषयवस्तु =
उपदेशात्मक
सामाजिक आचार विचार के मानदंड
✳️ सदृशता की खोज में बी . बी . लाल के प्रयास :-
🔹 1951 - 52 में एक प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार ( जिनका नाम बी . बी . लाल था ) ने मेरठ जिले ( उत्तरप्रदेश ) के हस्तिनापुर नाम के गांव में खुदाई का काम किया ।
🔹 लेकिन जैसा हम किताबों में पढ़ते आएं हैं यह हस्तिनापुर वैसा बिल्कुल नहीं था ।
🔹हालांकि संयोग से इस जगह का नाम भी हस्तिनापुर ही था । बी . बी . लाल जी को यहाँ की आबादी के कुछ सबूत मिले । बी . बी . लाल ने बताया कि , जिस जगह खुदाई की गई वहां से मिट्टी की बनी दीवारों और कच्ची ईंटों के अलावा कुछ भी नहीं मिला ।
🔹और इससे यह बात पता चली की शायद जैसा महाभारत में हस्तिनापुर दिखाया जाता रहा है जिसमे बड़े बड़े महल भी थे लेकिन यहां से ऐसा कुछ नहीं मिला ।
✳️ महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है , कैसे ?
🔹 महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है क्योंकि यह हजारों सालों तक लिखा गया है इसमें कई सारे परिवर्तन पिछले कई सालों में आए है इसका अनुवाद भी कई सारी भाषा में अलग अलग हुआ है इसमें कई सारे श्लोक है और यह दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य है ।
👉 A . क्षत्रिय :-
🔹 यह समय पड़ने पर युद्ध करते थे ।
🔹 यह राजाओं को सुरक्षा प्रदान करते थे ।
🔹 वेदों को पढ़ना और यज्ञ कराने का कार्य करते थे ।
🔹 यह जनता के बीच न्याय कराने का कार्य करते थे ।
👉 B . ब्राह्मण :-
🔹 यह पुस्तकों का अध्ययन करते थे ग्रंथों का अध्ययन करते थे ।
🔹 वेदों से शिक्षा प्राप्त करते थे ।
🔹 यज्ञ करवाना और यज्ञ करना इनका कार्य था ।
🔹 यह दान दक्षिणा लेते थे वह देते थे ।
👉 C . वैश्य :-
🔹 यह व्यापार करते थे ।
🔹 पशुपालन करते थे ।
🔹 कृषि करना इनका का मुख्य कार्य था ।
🔹 दान दक्षिणा देना इनके मुख्य कारणों में से एक है ।
👉 D . शुद्र :-
🔹 यह तीनों वर्गों की सेवा करने का कार्य करते थे इनका मुख्य कार्य इन तीनों की सेवा करने का था ।
👉 इन नियमो का पालन करवाने के लिए व्राह्मण ने दो - तीन नीतियां अपनाई थी ।
🔹 वर्ण व्यवस्था ईश्वरीय देन है ।
🔹 शासको को प्रेरित करना कि वर्ण व्यवस्था लागू कराएँ ।
🔹जनता को यकीन दिलाना कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है ।
✳️ क्या हमेशा क्षत्रिय राजा हो सकते हैं ?
🔹 नहीं , यह असत्य है इतिहास में कई ऐसे राजा रहे हैं जो क्षत्रिय नहीं थे
🔹 मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जिसने एक विशाल साम्राज्य पर राज किया था बौद्ध ग्रंथों में यह बताया गया है कि वह क्षत्रिय है लेकिन ब्राह्मण शास्त्र में यह कहा गया है कि वह निम्न कुल के हैं
🔹 सुंग और कण्व मौर्य के उत्तराधिकारी थे जो कि यह माना जाता है कि वह ब्राह्मण कुल से थे
🔹 इन उदाहरण से हमें यह जात होता है कि राजा कोई भी बन सकता था इसके लिए यह जरूरी नहीं था कि वह क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ हो ताकत और समर्थन ज्यादा महत्वपूर्ण था राजा बनने के लिए ।
✳️ जाति :-
🔹 जहाँ वर्ण केवल 4 थे वहाँ जातियाँ बहुत सारी थी ।
🔹 जिन्हें वर्ण में समाहित नही किया उन्हें जातियो में डाल दिया जैसे :- निषाद , सुवर्णकार
🔹 जातियाँ कर्म के अनुसार बनती गई । कुछ लोग दूसरे जीविका को आपने लेते थे ।
✳️ चार वर्गो के परे : अधीनता ओर सँघर्ष :-
🔹ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था से कुछ लोगो को बाहर रखा गया । इन्होंने कुछ वर्गों को " अस्पृश्य घोषित किया ।
🔹 ब्राह्मण अनुष्ठान को पवित्र काम मानते थे ।
🔹ब्राह्मण अस्पृश्यो से भोजन स्वीकार नही करते थे ।
🔹 कुछ काम दूषित मने जाते थे जैसे :- शव का अंतिम संस्कार करना और मृत जानवरो को छूना । इन कामो को करने वाले को चांडाल कहा जाता था ।
🔹 चाण्डालों को छूना और देखना भी पाप समझते थे ।
✳️ मनुस्मृति के अनुसार चाण्डाल के कर्त्तव्य :-
🔹 गाँव से बाहर रहना ।
🔹 फेके बर्तन का प्रयोग करना ।
🔹 मृत लोगो के कपडे पहनना।
🔹 मृत लोगो के आभूषण पहनना ।
🔹 रात में गाँव - नगरो में चलने की मनाही ।
🔹 अस्पृश्यो को सड़क पर चलते हुए करताल बजाना पड़ता था । ताकि दूसरे उन्हें देखने से बच जाए ।
✳️ संसाधन एव प्रतिष्ठा :-
🔹 आर्थिक संबंधों के अध्यन से पता लगा की दस , भूमिहीन खेतिहर मजदूर , मछुआरों , पशुपालक , कृषक , मुखिया , शिकारी , शिल्पकार , वणिक , राजा आदि सभी का सामाजिक स्थान इस बात पर निर्भर करता था कि आर्थिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण कैसा है ।
✳️ सम्पत्ति पर स्त्री , पुरूष के भिन्न अधिकार :-
👉 मनु स्मृति के अनुसार :-
🔹पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति पुत्रों में बाँटी जाती थी।
🔹ज्येष्ट पुत्र को विशेष हिस्सा दिया जाता था ।
🔹विवाह के दौरान मिले उपहार पर स्त्री का अधिकार था ।
🔹यह संपति उसकी संतान को विरासत में मिलती थी ।
🔹पति का उस पर अधिकार नहीं था ।
🔹स्त्री पति की आज्ञा के बिना गुप्त धन संचय नही कर सकती थी ।
🔹उच्च वर्ग की औरत संसाधनों पर अधिकार रखती थी ।
✳️ वर्ण एवं संपति के अधिकार :-
🔹शुद्र के लिए केवल एक जीविका थी →सेवा करना
🔹लेकिन उच्च वर्गों में पुरुषो के लिए अधिक संभावना थी ।
🔹 ब्राह्मण और क्षत्रिय धनी व्यक्ति थे ।
🔹 बौध्दों ने ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था की आलोचना की ।
🔹 बौध्दों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं किया ।
✳️ साहित्यक , स्रोतों का इस्तेमाल :-
🔹 किसी भी ग्रन्थ का विश्लेषण करते समय इतिहासकार कई पहलुओ का ध्यान रखते हैं ।
🔹 भाषा = साधारण भाषा या विशेष भाषा
🔹 ग्रंथ का प्रकार = मंत्र या कथा
🔹 लेखक के विषय में ( दृष्टिकोण )
🔹श्रोताओं का निरीक्षण
🔹ग्रंथ का रचना काल
🔹ग्रंथ की विषयवस्तु
✳️ भाषा एव विषयवस्तु :-
आख्यान
कहानियाँ
👉 ग्रंथ विषयवस्तु =
उपदेशात्मक
सामाजिक आचार विचार के मानदंड
✳️ सदृशता की खोज में बी . बी . लाल के प्रयास :-
🔹 1951 - 52 में एक प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार ( जिनका नाम बी . बी . लाल था ) ने मेरठ जिले ( उत्तरप्रदेश ) के हस्तिनापुर नाम के गांव में खुदाई का काम किया ।
🔹 लेकिन जैसा हम किताबों में पढ़ते आएं हैं यह हस्तिनापुर वैसा बिल्कुल नहीं था ।
🔹हालांकि संयोग से इस जगह का नाम भी हस्तिनापुर ही था । बी . बी . लाल जी को यहाँ की आबादी के कुछ सबूत मिले । बी . बी . लाल ने बताया कि , जिस जगह खुदाई की गई वहां से मिट्टी की बनी दीवारों और कच्ची ईंटों के अलावा कुछ भी नहीं मिला ।
🔹और इससे यह बात पता चली की शायद जैसा महाभारत में हस्तिनापुर दिखाया जाता रहा है जिसमे बड़े बड़े महल भी थे लेकिन यहां से ऐसा कुछ नहीं मिला ।
✳️ महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है , कैसे ?
🔹 महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है क्योंकि यह हजारों सालों तक लिखा गया है इसमें कई सारे परिवर्तन पिछले कई सालों में आए है इसका अनुवाद भी कई सारी भाषा में अलग अलग हुआ है इसमें कई सारे श्लोक है और यह दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य है ।



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